रामपुरा- रामपुरा के समीप गांव बैसला में मलिक परिवार द्वारा आयोजित पांच दिवसीय दुर्गा पूजा का आयोजन किया जा रहा है| मालवा अंचल में बंगाली परंपरा के अनुसार पांच दिवसीय दुर्गा पूजा का आयोजन पहली बार किया जा रहा है| सभी परंपराएं बंगाल की परंपराओं के अनुसार मनाई जाएगी जिसको लेकर मूर्तिकार एवं पुजारी भी बंगाल से बुलाए गए हैं| अनेक बंगाली परिवार मालवा अंचल में रहते है| परंतु इनकी परंपराएं पूजा-पाठ व त्योहार आज भी पश्चिम बंगाल की तरह मनाया जाता हैं| कार्यक्रम के आयोजक डॉ मोहन मलिक ने जानकारी देते हुए बताया बंगाली परिवारों में दुर्गा पूजा की यह परंपरा हजारो साल पुरानी है, बंगाली परिवारों में सबसे ज्यादा मान्यता दुर्गा पूजा को लेकर रहती है| प्रतिवर्ष दुर्गा पूजा के लिए बंगाल जाते थे परंतु धीरे-धीरे हमने दुर्गा पूजा को यही मनाने का निर्णय लिया है| ताकि क्षेत्र के लोगों को बंगाली संस्कृति परंपरा से रूबरू हो सकें डॉ मोहन मलिक का कहना है कि भले ही नवरात्रि के 9 दिन विशेष हो लेकिन बंगाली समाज में नवरात्रि का उत्सव विशेष पांच दिन का होता है| पांच दिनों में विविध परंपराओं के अनुसार दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है| प्रथम दिन देवी बोधन अधिवास (मा को बुलावा) षस्ति पूजा होती है, दूसरे दिन देवी नव पत्रिका प्रवेश सप्तमी पूजा अंजली इसे केले के गाछ के साथ नौ तरह की पत्तियों को पाट के सूत से बांधकर तैयार किया जाता है। इसमें केला के अलावा बेल, कच्चू, हल्दी, जौ की बाली, धान की बाली, अनार की पत्ती, अशोक तीसरे दिन की पूजा पद्धति में महा अष्टमी एवं संघी पूजा में मां दुर्गा को 108 दीपक,108 कमल के फूल,108 बेलपत्र अर्पित किए जाते हैं। चतुर्थ दिवस की पूजा में अंजलि पूजा महा नवमी पूजा चंडी पाठ एवं भंडारे का आयोजन किया जाता है| पंचम दिवस पर महालक्ष्मी पूजन अपराजिता पूजन देवी विहित पूजा समापन पूजन दर्पण विसर्जन सिंदूर खेला एवं चल समारोह देवी विसर्जन सहित कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते है| उक्त आयोजन को लेकर ग्राम रावत नगर बैसला में जोर-शोर से तैयारियां हो रही है क्षेत्र में होने वाले इस अनूठे आयोजन को लेकर लोगों में अपार उत्साह एवं उत्सुकता बनी हुई है यह पहला ऐसा आयोजन होगा| जब बंगाल की परंपरा को लोग मालवा अंचल में देखेंगे इसको लेकर क्षेत्र के सभी लोगों को उक्त आयोजन में आमंत्रित किया गया है| आयोजन की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आयोजन स्थल पर बनने वाले पांडाल एवं व्यवस्थाएं बंगाली परंपराओं के अनुसार बनाए जा रहे हैं|