कुकडेश्वर। शिव महापुराण कथा श्रवण व शिव भक्ति के लिए पहले अहंकार दूर करना होगा। क्योंकि कि जब तक अहंकार होता है तब तक भोल नाथ प्रसन्न नही होते है।जिस प्रकार आदि देव महादेव को भोलेनाथ कहा जाता है उसी प्रकार जहां तक शिव है सुख शांति है और ई हटाया तो शव बन जाता है आज हम अंहकार ईष्या मोह में शव बन कर जि रहे हैं शिव बनोगे तो मनुष्य जीवन जिने का आंनद आयेगा ।अहंकार दूर होगा तब तक शिव की भक्ति प्राप्त होना कठिन है। उक्त बात राधा कृष्ण मंदिर प्रांगण भदवा में चल रही शिव महापुराण कथा के छठे दिन आमन खेड़ी के पं नरेंद्र जी शर्मा ने कही। शिव पुराण कथा के दौरान आपने भजनों पर बरसाने का रास राधा कृष्ण का प्रसंग व जहां प्रेम अपनत्व हैं वहां शिव पार्वती हैं।पढ़ें शर्मा ने कहा कि शिव और पार्वती के दो पुत्र हुए एक का नाम कार्तिकेय और दूसरे का नाम गणेश है। कार्तिकेय पुरुषार्थ का प्रतीक माना गया है शिव पुराण हमें बता रही हैं पुरुषार्थी बनो और पुरुषार्थ धन प्राप्त का ही नहीं होना धर्म में भी पुरुषार्थ कर मानवीय बनों। पुराणों में श्री गणेश की अनेक कथाएं प्राप्त होती हैं। एक कल्प में साक्षात श्री कृष्ण उनके पुत्र बनते हैं दूसरे कल्प में पार्वती के उद्घटन से उत्पत्ति होती है। वहीं एक कल्प में शनि की दृष्टि से सिर कटता है और दूसरे में स्वयं शिवजी सिर काटते हैं। माता के कोप से बचने के लिए हाथी का सिर रखा जाता है।हाथी का सिर बड़ा होता है लेकिन आंखें छोटी होती हैं यह सूक्ष्म दृष्टि का प्रतीक है।इसका मतलब है कि हमारी दृष्टि सूक्ष्म होनी चाहिए। और कान सूप के जैसे फालतु बात गणेश नहीं सुनते इसी प्रकार बाहरी बातों और बुरे वचनों को नहीं सुने भक्ति और मधुर ज्ञानोपार्जन ही सुने। एक दांत अर्थात जो बात कह दी उस पर अटल रहते हैं और लम्बी नाक होना प्रतिष्ठा का प्रतीक है। हम गणेश उत्सव देख रहे मना रहे शिव पुराण का एक एक शब्द जिवन उपयोगी है कथा सुनना उत्सव मनाना जितना मायने नहीं रखता उतना आचरणों में लाना पायने रखता है।कथा व्यास ने कहा कि जहां सूक्ष्म दृष्टि होती है वहां विघ्न नही होता हैं ।और जहां विघ्न बाधा न हों वहीं ऋद्धि-सिद्धि और शुभ लाभ का सदैव आगमन होता हैं शिवकथा पुराण में कई मार्मिक उदाहरण दिये व कथा के दोराना भजनों पर श्रोताओं ने भक्ति के गोते लगाते हुए झुम उठें पं नरेंद्र शर्मा ने शिव कथा पुराण के दौरान आमजनों से कहा की जिस प्रकार गणेश कार्तिकेय माता पिता के आज्ञाकारी विनम्र थे उसी प्रकार हमें भी माता पिता व बड़ों का सम्मान करना चाहिए।