कुकडेश्वर। प्रभु इच्छा के बिना कोई कार्य पुर्ण नहीं हो सकता हमारी इच्छा पुरी तरह धरी रह जाती है। हम सिर्फ कठपुतली है जिस तरह से प्रभु नचाते हैं हमें नाचना पड़ता है इस लिए ये मानव जीवन मिला है प्रभु से प्रित लगावों। क्यों कि ये संसार का सुख क्षण मात्र का है अखण्ड प्रकाश सच्चिदानंद में हमें प्राप्त हो सकता है। उक्त बात सुर्य वंशी कुमरावत तमोली समाज के तत्वावधान में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे रोज व्यास गादी से पंडित दिलीप जी त्रिवेदी नेगरुन ने तमोली धर्म शाला में धर्म सभा के बीच श्रोताओं से संगीत मय कथा के दौरान बताया कि मानव जीवन मिलने के बाद भी हम अचेतन अवस्था में है चेतन होने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है और गुरु भी सदगुरु हो आज हमें हमारी आत्मा पर चढ़े इस कलेवर को हटाना है तो सच्चा गुरु की शरण लेना होगी गुरु ही तरण तार है।मानव को अपना जीवन समर्पण भाव से समाधि पुर्वक जिना चाहिए समाधि याने कि सम भाव में रह कर आत्म रमण करना चाहिए क्योंकि इस संसार में सब कुछ ईश्वर का दिया है प्रकृति से हमें सब मिलता है और हम प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहे हैं तो हमें सुख कहां मिलेगा। आपने भजन के माध्यम से बताया कि सतगुरु ज्योत से ज्योत जगाओं राजा परीक्षित को सतगुरु मिले तो आत्मा के ऊपर अज्ञान रूपी आवरण हटा इसी प्रकार हमें ज्ञान की ज्योति जगाने के लिए भागवत कथा श्रवण का लाभ लेना चाहिए। पं दिलीप जी ने बताया कि भागवत में योग,ज्ञान, समाधि का बहुत ही महत्व बताया आपने मनु पिया, श्रुति,अश्रुति आदि वर्णन पर मार्मिक उदाहरण के साथ भागवत कथा चल रही हैं।