कुकडेश्वर- दिगम्बर जैन संत इस युग के भगवान आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की समाधि हो गयी आपका जन्म 10 अक्टूबर 1946 को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगाँव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। पिता श्री मल्लप्पा थे जो बाद में मुनि मल्लिसागर बने। उनकी माता श्रीमंती थी जो बाद में आर्यिका समयमति बनी। विद्यासागर जी को 30जून 1968 में अजमेर में आप ने 22 वर्ष की आयु में आचार्य ज्ञानसागर जी ने दीक्षा दी जो आचार्य शांतिसागर शिष्य थे। आचार्य विद्यासागर जी को 22 नवम्बर 1972 में ज्ञानसागर जी द्वारा आचार्य पद दिया गया था, केवल विद्यासागर जी के बड़े भाई ग्रहस्थ है। उनके अलावा सभी संन्यास ले चुके है। भाई अनंतनाथ और शांतिनाथ ने आचार्य विद्यासागर जी से दीक्षा ग्रहण की और मुनि योगसागर जी और मुनि समयसागर जी कहलाये। आचार्य विद्यासागर जी संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएँ की हैं। सौ से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है।उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं। उन्होंने काव्य मूक माटी की भी रचना की है।विभिन्न संस्थानों में यह स्नातकोत्तर के हिन्दी पाठ्यक्रम में पढ़ाया जाता है।आचार्य विद्यासागर जी कई धार्मिक कार्यों में प्रेरणास्रोत रहे हैं।आचार्य विद्यासागर जी के शिष्य मुनि क्षमासागर जी ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेज़ी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है। मुनि प्रणम्यसागर जी ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है। आप इस युग में सभी के लिए प्रेरणा सागर थे।
थोड़ा सा जानिए आचार्य श्री को
कोई बैंक खाता नही कोई ट्रस्ट नही, कोई जेब नही, कोई मोह माया नही, अरबो रुपये जिनके ऊपर निछावर होते है उन गुरुदेव के कभी धन को स्पर्श नही किया। आजीवन चीनी का त्याग, आजीवन नमक का त्याग,आजीवन चटाई का त्याग,आजीवन हरी सब्जी का त्याग, फल का त्याग,अंग्रेजी औषधि का त्याग,सीमित ग्रास भोजन, सीमित अंजुली जल, 24 घण्टे में एक बार 365 दिन,आजीवन दही का त्याग,सूखे मेवा (dry fruits)का त्याग,आजीवन तेल का त्याग, सभी प्रकार के भौतिक साधनो का त्याग,थूकने का त्याग,एक करवट में शयन बिना चादर, गद्दे, तकिए के सिर्फ तखत पर किसी भी मौसम में। पुरे भारत में सबसे ज्यादा दीक्षा देने वाले,एक ऐसे संत जो सभी धर्मो में पूजनीय बने,पुरे भारत में एक ऐसे आचार्य जिनका लगभग पूरा परिवार ही संयम के साथ मोक्षमार्ग पर चल रहा है,शहर से दूर खुले मैदानों में नदी के किनारो पर या पहाड़ो़ पर अपनी साधना करना,अनियत विहारी यानि बिना बताये विहार करना, प्रचार प्रसार से दूर- मुनि दीक्षाएं, पीछी परिवर्तन इसका उदाहरण,आचार्य देशभूषण जी महराज जब ब्रह्मचारी व्रत से लिए स्वीकृति नहीं मिली तो गुरुवर ने व्रत के लिए 3 दिवस निर्जला उपवास किया और स्वीकृति लेकर माने,ब्रह्मचारी अवस्था में भी परिवार जनो से चर्चा करने अपने गुरु से स्वीकृति लेते थे और परिजनों को पहले अपने गुरु के पास स्वीकृति लेने भेजते थे। आचार्य भगवंत जो न केवल मानव समाज के उत्थान के लिए इतने दूर की सोचते है, मूक प्राणियों के लिए भी उनके करुण ह्रदय में उतना ही स्थान है। शरीर का तेज ऐसा जिसके आगे सूरज का तेज भी फिका और कान्ति में चाँद भी फीका है।ऐसे हम सबके भगवन् चलते फिरते साक्षात् तीर्थंकर सम संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्या सागर जी के श्री चरणों में शत शत नमन, प्रधानमंत्री हो या राष्ट्रपति सभी के पद से अप्रभावित साधना में रत गुरुदेव हजारो गाय की रक्षा, गौशाला के माध्यम से सेवा आदि धर्म प्रभावना देते हुए आप मोक्ष गामी हो गये आपकी समाधी डुगर पुर में आपकी समाधी पर समर्पित कुकडेश्वर, मनासा, रामपुरा जैन श्री संघ विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।