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खबर-जीवन में एकाग्रता ही सफलता का मुख्य द्वार है--  उपाध्याय प्रवर श्री राजेश मुनि जी 

कुकडेश्वर- जीवन में असफल होने पर इन्सान दुखी होता है, वहीं सफल होने पर खुशी का अनुभव करता, हर इन्सान सफल होना चाहता हैं लेकिन हरेक को सफलता मिल नही पाती और असफलता के चलते इन्सान दुुखी हो जाता है। और मन अशान्त हो जाता है, लेकिन वह यह विचार नही करता कि असफल हुआ क्यो उक्त विचार हुकमेश संघ के नवम् पटधर आचार्य भंगवत 1008 श्री रामलाल जी मसा के आज्ञाकारी प पू उपाध्याय प्रवर श्री राजेश मुनि जी मसा ने आदर्श कॉलोनी स्थित राजेन्द्र सुरी ज्ञान मन्दिर में अपनी अमृत देशना में धर्म प्रभावना देते हुए श्रावक श्राविका से कहीं आपने कहा कि सफलता और असफलता हमारी एकाग्रता पर निर्भर है, जो अपने कार्य के प्रति जितना अधिक एकाग्र होता है उसके सफल होने की सम्भावना उतनी ही बढ जाती है। आचार्य द्रोणाचार्य कोरवों और पाण्डवो को शिक्षा दे रहे थे एक दिन उन्होने उनसे वृक्ष पर बैठी चिडिया की आंख पर निशाना साधने को कहा और निशाना साधते सभी कर्मवीरो से पुछते रहे कि उन्हे क्या दिखाई दे रहा है तो सभी ने अपने अपने हिसाब से उत्तर दिया अर्जुन का नम्बर आया और वह निशाना साधने लगा तो गुरू द्रोणाचार्य ने उससे फिर वही सवाल किया तो अर्जुन ने कहा कि मुझे सिर्फ चिडिया की आंख दिखाई दे रही है, यानी अर्जून की अपने लक्ष्य के प्रति एकाग्रता स्पष्ट थी। आपने कहा इच्छाओ पर नियत्रंण करना इन्द्रीयों के पांचो विषयों से आत्मा को मुक्त रखना मन की एकाग्रता को कायम रखने का सबसे महत्वपूर्ण उपाय है। हमारी साधना की पुर्णता इस बात पर निर्भर करती है कि हमारी एकाग्रता कितनी है। उन्होने कहा जो इच्छाओं पर विजय प्राप्त करता है वही वीर कहलाता है। लेकिन हमारा मन बडा चंचल है, इसको नियंत्रित करने का प्रयास हम खुब करते है लेकिन परिणाम नही आ पाते लेकिन यह बात भी हमें समझना हेै कि असम्भव कुछ भी नहीं है, क्योकि कोई चिज असम्भव होती तो भगवान उसका संदेश ही क्यो देते, भगवान ने यदि संदेश दिया है तो वह प्रमाणित है। हमें यह नही मानना चाहिये कि दुनिया के वातावरण,आकर्षण,प्रलोभन से हम अपने मन को स्थिर नही रख पाऐगें, हमारे अन्दर वह ताकत है कि हम अपनी आत्मा को अपने मन को एकाग्र कर सकते है। भारी मात्रा में खरीदे हुऐ शेयर के भाव अचानक घट जाने परिवार में किसी सदस्य के साथ दूर्घटना होने या शरीर में केंसर जैसी असाध्य बीमारी होने की जानकारी पर भी हम अपने मन को स्थित रख सकते है। बशर्ते हमारे मन में यह विचार नही आना चाहिये कि हमारे में क्या कमी हैै, इससे भी महत्वपूर्ण तो यह समझने की है कि भयानक से भयानक परिस्थिति भी हमारी सहयोगी है हमारी एकाग्रा को बढाने वाली होती है। उन्होने कहा हमारी इच्छाऐं व्यापक है इसलिये हम अपने लक्ष्य को देख नही पाते हमारा मन सभी तरफ भटकता है सभी चिजो को एक साथ पाने की चाह ही हमें ले डूबती है। उपाध्याय प्रवर श्री राजेश मुनि ने कहा ‘‘ एक साधे सब सधे सब साधे सब जाए‘‘ यानी जिस समय जो काम कर रहे है उसमें इतना डूब जाऐ की ओर कुछ दिखाई ही नही दे तो सफलता आपके कदम चुमने लगेगी आपने आचार्य गणेशाचार्य के विहार चर्या का वृतान्त सुनाते हुऐ कहा कि सामने से आते राजकवंर जी महाराज अपनी इर्या समिति में इतने एकाग्रचित्त थे कि सामने से आते हुऐ गणेशाचार्य को देख नही पाऐ। इस पर गणेशाचार्य ने कहा कि भी देखो देखो ‘‘ इर्या समिति की जहांज चल रही है‘‘ जिस दिन ऐसी एकाग्रता हमारे जीवन में भी आ जाऐगी तो हमारा दुःख हमारी विफलताऐं हमारी इच्छाऐं सभी समाप्त होकर हम सफलता के चरम सिखर को प्राप्त करने वाले बन जाऐेगें, हमें अपने अंतकरण से अपनी शक्तियों को जागृत करना है जिससे हम हमारे मन को नियंत्रित कर सके और जिस दिन यह हो जाऐगा हमारा जीवन भी मंगलकारी हो जावेगा।

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