कुकडेश्वर- आकाश में पतंग उड़ती है वह पतंग कब तक सलामत रहती है जब तक उस पतंग नियंत्रण करने वाले कुशल हाथों में डोर रहती हैं। इसी प्रकार मानव जीवन में हम जब तक सलामत रहते हैं जब तक जीवन की डोर बिखरीना हो व बड़े बूढ़ों के साथ ही गुरु के हाथ में हो। उक्त बात जैन धर्मशाला में ज्ञान गच्छ के मधुर व्याख्यान संत श्री अभिषेक मुनि जी ने धर्म प्रभावना देते हुए श्रावक श्राविकाओं को फरमाया की पतंग जिस प्रकार आकाश में कुशल हाथ में देर तक उड़ती रहती हैं।इसी प्रकार पतंग हम स्वयं हैं व डोर बुजुर्ग गुरु जन है और चलाने वाला अनुशासन हैं जिसके जीवन व परिवार में अनुशासन होता है वहां शांति और समाधि बनी रहती हैं।जीवन में हमें असंतोष की अनुभूति क्यों होती हैं इसका मुख्य कारण है आजकल घरों में वात्सल्य भाव विनय भाव और विवेक भाव खत्म हो गया हैं। आज संयुक्त परिवार में बिखराव हैं छोटा परिवार होने के बाद भी वो घर कब्रिस्तान के समान बना रहता है बेटा पिता से बात नहीं करती बहु सांस से बात नहीं करती भाई भाई में वेर और पिता की बात बेटा नहीं मानता इसका मुख्य कारण अनुशासन की कमी व अज्ञानता वश हो रहा है। आपने फरमाया कि घर को स्वर्ग बनाना है तो जीवन में वात्सल्य भाव होना चाहिए छोटो से भी प्रेम पूर्वक विनय पूर्वक व विवेक से काम लेना चाहिए आपने संयुक्त परिवार व संस्कार सभ्यताओं के साथ ही कई मार्मिक उदाहरण देते हुए मानव जीवन को सफल बनाने एवं परिवार में सुख शांति के लिए अनुशासन को मुख्य बताया इससे पूर्व श्री संदीप मुनि जी ने बताया कि हम जीवन में बाहर की जानकारी तो बहुत रखते हैं लेकिन जीवन में हम अपने स्वयं की जानकारी नहीं रखते जिसने जीवन की जानकारी नहीं रखी उसका कल्याण संभव नहीं है। जो व्यक्ति हर काम व हर संकट समभाव से सह लेता है, उसका कल्याण हो जाता है अज्ञानता ही दुख का कारण है आपने बताया कि पाप करने से डरना और धर्म से आलस्य नहीं करना। बड़ी ही पुण्यवानी से मनुष्य जीवन मिला है। सांसारिक कार्य तो हम कर रहे हैं धन भी खुब कमा रहे हैं, लेकिन धर्म करने में हम बहाना ढूंढते हैं जिस प्रकार परिस्थिति सब कुछ करा देती हैं उसी प्रकार धर्म को भी परिस्थिति समझ कर छोड़ना नहीं चाहिए धर्म में आलस्य नहीं करना स्वेच्छा और प्रसन्नता के साथ धर्म आराधना कर आत्का का कल्याण करें।