कुकडेश्वर- मानव जीवन में रहकर अहंकार नहीं करना चाहिए शांत प्रसन्न चित्त जीवन जी कर स्वयं भी प्रसन्न रहे और दूसरों को भी प्रसन्न रखें ऐसी प्रवृत्ति मानव जीवन में बनी रहना चाहिए। बड़े ही शुभ कर्मों के कारण 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मानव जीवन मिलता है और इस मानव जीवन को पाकर शिव समान अपने जीवन को बनाएं जिसके जीवन में शिव हैं वह सत्य है नहीं तो शव के समान है। उक्त बात समीपस्थ प्राचीन श्री ओंकारेश्वर महादेव मंदिर जुनापानी में भव्य संगीतमय शिवमहा पुराण कथा का परायण व्यास गादी से कथावाचक पंडित श्री नरेंद्र शर्मा ने धर्म सभा में शिव की अनन्य लीलाओं का वर्णन किया इसी क्रम में पंचम दिवस भगवान शिव पार्वती का मंगलमय विवाह की झांकी व शिव बारात आदि के साथ किया। इसी क्रम में छष्ट दिवस कथा के दौरान कार्तिक स्वामी पुत्र के रूप में वर्णन किया एवं पुत्र के द्वारा कालांतर में तारकासुर नाम के असुर उत्पन्न हुआ। जिसने तपस्या कर शिव से वरदान मांगा की शिवपुत्र से मेरी मृत्यु हो और वरदान के मद में चूर हो कर अत्याचार करने लगा वरदान पाकर समझ बैठा की में अजर अमर हो गया। आपने उदाहरण देते हुए बताया कि जन्म लेने के बाद मृत्यु भी अटल सत्य जिसे सभी को स्वीकार करना पड़ता है। जन्म लिया तो मृत्यु निश्चित है, तत्पश्चात कार्तिक स्वामी ने अधर्मी का उद्धार कर भक्तों और देवताओं को प्रसन्न किया अधर्म पर धर्म की विजय होती है इसलिए जीवन में कभी भी अपने धन का बल का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए सत्कर्मों सत्कार्य में और मानव सेवा में लगायें।