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जिसके जिवन में संतोष होगा वहीं चैन की नींद सो पायेगा--प पू श्री भूपेन्द्र मुनि जी मा सा

कुकडेश्वर- संतोष मय जीवन जीने से आदमी शांत और प्रसन्न चित्त हो जाता है, व भागम भाग करने से हमेशा अशांत रहता है। दिन रात पैसों के लिए भागना और पर्याप्त सुख वैभव  विलासिता की चीजें होने के बाद भी आदमी चैन की नींद नहीं सो पाता है जिसका मुख्य कारण उसके जीवन में संतोष का नहीं होना, आपने उदाहरण देते हुए बताया कि "सोने की चेन वाला सुखी है या चैन की नींद सोने वाला सुखी है" धर्मानुप्रियो चैन की नींद  सोने वाले का हमेशा सुखी जीवन होता है, और उक्त सुखचैन को पाने के लिए जीवन में दो बातें होना आवश्यक है जिसने जीवन में दो मुख्य बातों का स्मरण रख लिया संकल्प कर लिया तो जीवन सुखी होगा। उक्त विचार जैन धर्म सराय में धर्म प्रभावना देते हुए प पू श्री भूपेंद्र मुनि जी मा सा ने फरमाते हुए कहा के जीवन में हमेशा इच्छाओं को सीमित रखना व महापुरुषों का चिंतन करना चाहिए, हमेशा मन अशांत असंतोष इसलिए रहता है क्योंकि हमारी दृष्टि दूसरों के प्रति हैं जो हमेशा दुखी बनाए रखती है दृष्टि हमेशा स्वयं की ओर रखें एवं इच्छा को कम करें जिसने इस मूल मंत्र को जीवन में धारण कर लिया "जो मुझे प्राप्त है वह मेरे लिए पर्याप्त है" तो उसके जीवन से अशांति असंतोष व दुख हमेशा के लिए चला जाएगा और उसे शांति की प्राप्ति होगी सुख की अनुभूति होगी इसी प्रकार जीवन में हमेशा महापुरुषों का चिंतन करना जिनके पास सुख भोग विलासिता होने के बाद भी उन्होंने धर्म की शरण को अंगीकार की एवं संयम पथ पर चले क्योंकि आत्मा का कल्याण संयम के द्वारा ही होता है। जिनशासन में आगमवाणी में भगवान महावीर ने भी फरमाया सांसारिक भोगों से इच्छा को कम करो और धर्म त्याग तपस्या की ओर इच्छा को बढ़ाओ जिसके जीवन में संतोष होगा वह सदा सुखी जीवन जिएगा और आत्मा का कल्याण करेगा इससे पूर्व  प पू श्री संदीप मुनि जी ने बताया कि जिनवाणी सुख कारी है जिसने जिनवाणी को सुन कर आत्मसात कर लिया उसका कल्याण हमेशा होगा जिनवाणी के अनुसार सत्य को समझ लिया और सत्य मार्ग पर चला आनंद होगा जैन धर्म दर्शन में गुणो से होती है पूजा और बीन गुण पूजा हो वह धर्म है दूजा जिनशासन और जैन धर्म बताता है की व्यक्ति महानता और उसकी पूजा उसके गुणों, त्याग,तप,ज्ञान, दर्शन और चारित्र से होती हैं जिसके जीवन में सम्यक दर्शन सम्यक ज्ञान सम्यक चारित्र और त्याग तपस्या हो जो पंच महाव्रत धारी हो वही  पूज्य होता है।

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