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खबर:- आत्मा पर चडे़ कर्मो को धोने वाली है सच्ची सामायिक--प पू श्री भूपेन्द्र मुनि जी (दुःख का मुल कारण हम स्वयं है --प पू श्री संदीप मुनि जी)

कुकडेश्वर- जैन धर्म में भगवान महावीर स्वामी आगम कारोने स्वयं बताया है, एक सच्ची सामायिक अमूल्य है जिसका कोई मूल्य नहीं जीवन में मात्र एक सच्ची सामायिक करली तो उसका ही जबरदस्त लाभ होता है। इसी प्रकार जीवन में हम संसार की दलाली तो करते हैं और संसार की दलाली कोयले की दलाली के समान है दलाली में अगर मुनाफा हुआ तो फायदा नहीं तो घाटा ही घाटा लेकिन धर्म की दलाली करे जोकि रत्नों की खान है धर्म की दलाली में लाभ ही लाभ है कभी घाटा ही नहीं होता है ।उक्त विचार जैन धर्म सराय में धर्म प्रभावना देते हुए प पू श्री भूपेंद्र मुनि जी मा सा ने फरमाया कि  मानव ने अगर जीवन में एक सच्ची सामायिक करली तो वह जन्म जन्मों के कर्मों को तोड़ने वाली है, आत्मा पर चढ़े कर्मों के मेल को धोने का सबसे उत्तम साधन है, सामायिक  के कई लाभ हैं जिसमें चार प्रमुख लाभ है सामयिक आत्मा की शुद्धि का पहला लाभ, सामायिक पापा को त्यागने का दूसरा लाभ, सामायिक दो घड़ी साधु जिवन जीने का तिसरा लाभ, सामायिक जीवो को अभयदान देने का चौथा लाभ है। आपने बताया कि दानों में सबसे बड़ा दान अभय दान होता है वही एक सामायिक करने में कई गुने लाभ प्राप्त होते हैं 48 मिनट की एक शुद्ध सामायिक से मानव स्वयं की आत्मा को जागृत कर आत्म कल्याण कर सकता है, कर्मों पर चढ़े कलेवर को हटाकर धर्म की ओर झुक जाता है सामायिक आत्मा को परमात्मा से मिलाने का एक मुख्य सेतु है वह संसार से मुक्ति दिलाने वाली सामायिक है मानव जीवन में आए हैं सांसारिक कर्म  हम करते रहते हैं लेकिन धर्म की दलाली जरूर करते हुए हमें धर्म से दोहरा लाभ लेना चाहिए । इस अवसर पर प पू श्री संदीप मुनि जी मा सा ने बताया कि संसार सागर से स्वयं भी तिरे और दूसरों को तिराये उसे ही कहा गया है तीर्थंकर और तीर्थंकर से मिलाने का काम करते हैं गुरु जिस पर गुरु कृपा हो जाए उसका जीवन संवर जाता है, धर्म कोई बंधन नहीं है यह तो जीवन जीने की कला है जो इस कला को सीख लेता है उसके जीवन में कभी कष्ट नहीं होता है। दुख का कारण भी मानव स्वयं है दुख और सुख तो कर्मों से मिलते हैं बाहर से कोई दुख व शत्रु दुख नहीं देता है हमारी दृष्टि और समझ को सुधारना होगा राग, द्वेष,क्रोध, अहंकार ही दुखी करता है जिसका मूल कारण मानव तु स्वयं है मूल कारण को पकड़कर जो सम्यक दृष्टि जीव मूल को पकड़ता है वह कर्मों को खफा लेता है, लेकिन अज्ञानी जीव मूल को ना पकड़ते हुए दूसरों पर दोषारोपण करता है यही सावधानी रखना है आत्मा शरीर अलग है शरीर हमें मिला है इसे समझना है धर्म जीवन में होना अवश्य है जिसके जीवन में धर्म निष्ठा रहे उसके जीवन में कभी दुख नहीं होता है। हमें बड़े पुण्य से जिनवाणी सुनने व गुरु संतों का समागम मिल रहा है आगम वाणी सुनने को मिल रही है उसको आत्मा स्मरण में लाकर अपनी आत्मा का कल्याण कर जीवन को सफल बनाना है।

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