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 संयम का पालन करना कठिन कार्य धर्म के लिए संयम का होना जरूरी--प पू श्री संदीप मुनि जी


कुकड़ेश्वर- जीवन में हर व्यक्ति सुख चाहता है दुःख कोई प्राप्त नहीं करना चाहता लेकिन क्या संसार में सभी सुखी है देखा जाए तो सुख के बजाय दुख ज्यादा है अज्ञानता नासमझी दुख का कारण है अज्ञानता में व्यक्ति पाप कर्म कर लेता है संसार में रहते हुए हम जाने अनजाने छल कपट मोह माया के चलते पाप कर्म कर लेते हैं ।शरीर संबंधी कार्यों पारिवारिक कार्य मैं अनचाहे पाप हो जाते हैं हर चमकती चीज सोना नहीं होती उसी प्रकार हम गहराई से नहीं देख कर जाने अनजाने पाप कर्म कर लेते हैं उक्त विचार पपू संत संदीप मुनि जी ने जैन धर्मशाला में उपस्थित श्रावक श्राविकाओं को आपने फरमाया कि व्यापार में हिसाब जरूरी है साधना में परीक्षण जरूरी है उसी प्रकार धर्म के लिए संयम का होना जरूरी है भुखे को भोजन कराना पुण्य  है धर्म नही जहाँ अहिंसा है  वहां धर्म है जहां संयम हैं वहां धर्म है पांचो इन्द्रियों को नियंत्रण में शरीर धर्म में रमा हुआ है देवता भी उनको नमन करते हैं।  संयम का पालन करना कठिन कार्य है जिन शासन में पुण्य से धर्म  को ऊंचा बताया है त्याग  तप आत्म नियंत्रण का कार्य धर्म अंधभक्ति का नहीं है आपने बताया कि जिन शासन में अनंत गहराइयों है प्राणी मात्र के प्रति दया अनुकंपा की भावना रखनी चाहिए सुख पाने की एक कला है आप भले तो जग भला।

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