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त्याग बंधन नहीं आत्म सुरक्षा का सेतु है--प पू श्री भूपेन्द्र मुनि जी मा सा

कुकडेश्वर- क्षमण भगवान महावीर की जिनवाणी व संतों का समागम बड़े ही पुर्णोदय से हमें मिलता है, देवता, चक्रवती, राजा महाराजाओं को भी कर्म खपाने के लिए त्याग करना पड़ता है, विश्व के मानसिक पटल पर देखो तो आर्य क्षेत्र भारत भूमि ही ऐसी है  जहां पर संत समागम हमें मिल रहा है।अनावरी क्षैत्र जो अन्य देश है जहां पर संतों का समागम नहीं मिलता है। आप हम सभी बड़ाही पुण्य कमा कर आए व आपका जन्म आर्य क्षैत्र में हुआ और उच्च कुल में जन्म होने के बाद जैन कुल मिला और आर्य क्षैत्र में भी आप धर्म आराधना और संतों का समागम नहीं कर संत के बजाय सोने पैसों व संसार को प्यारा रखेंगे तो हमारा जीवन बेकार हो जायेगा, हमें जिनवाणी का योग मिले और संतों का समागम मिले तो उसे कभी छोड़ना नहीं क्योंकि देवता, चक्रवर्ती, राजा महाराजा भी संतो के दर्शन के लिए अपना सिंहासन छोड़ देते हैं तो हमें भी संत दर्शन जिनवाणी क्षवण करना चाहिए और संत दर्शन मिल जाए तो जिनवाणी श्रवण का लाभ और संत की सेवा का लाभ कभी खोना नहीं उक्त बात स्थानक भवन प. पू. श्री भूपेंद्र मुनि जी मा. सा. ने धर्म प्रभावना देते हुए फरमाया इस अवसर पर प पू श्री संदीप मुनि जी मा सा ने बताया कि जिनवाणी को और धर्म को जानना और जान लिया तो अनुसरण करना आचरण में लेना मानव को जिनवाणी व धर्म को ज्ञान के स्वरूप से जानना जिनवाणी के तत्व को   जिनवाणी धर्म के मर्म को जान लिया तो उस पर श्रद्धा विश्वास कर अमल करना चाहिए क्योंकि जहां श्रद्धा और विश्वास होती है वहीं पर हम उस जिनवाणी में धर्म का अनुसरण कर आचरण में ले सकते हैं आपने फरमाया की त्याग बंधन नहीं है त्याग तो आत्मा का सुरक्षा चक्र है। त्याग से तो मानव जीवन का कल्याण होता है  त्याग नियम बड़ी बड़ी विपदा मिटा देते हैं आत्मा का कल्याण भी त्याग के माध्यम से ही होता है। उक्त अवसर पर प पू श्री मदन मुनि जी मा सा ने भी अपने मधुर वचनों से जिनवाणी क्षवण करवायी कुकडेश्वर स्थानक भवन में आप श्री सुखसाता पुर्वक विराज रहें हैं आप के सानिध्य में नित्य प्रातः 9-15 से प्रवचन दोपहर शास्त्र व ज्ञान चर्चा रात्रि में विशेष ज्ञान चर्चा हो रही है।

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