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जीवन को सहनशील बनाये और समभाव में रहें --प पू श्री वनिता श्री जी मा सा

कुकडेश्वर- आत्मीय दर्शन के लिए भगवान की वाणी संकेत कर रही है कि जिस तरह एक वाना पहन रखा है उसको साफ सुथरा बनाए रखने के लिए हमें उध्मकरना पड़ता है उसी प्रकार आत्मिक दर्शन करने के लिए धर्म आराधना से जुडना होगा। संसार के अन्य दर्शन हमने कितने ही कीयें और बाहरी दर्शनों को देखकर हम कभी खुश होते हैं तो कभी दुखी होते हैं लेकिन जिसने जीवन में आत्मिक दर्शन कर लिए उसे संसार की भौतिक वस्तु है तुच्छ लगेगी लेकिन आज मानव अबोध के कारण संसार दर्शन बाहरी वस्तुओं को देखने में लग रहा है। इकट्ठा करने वाला हमेशा भयभीत रहता है जिवन में जितनी चाहें उतनी ही वस्तु एकत्रित करें तो आदमी टेंशन मुक्त रहता है। कर्मों को कुरेदने से आत्मा हल्की होती है और पुण्य का घड़ा जिस प्रकार  खाली हो रहा है उसे खाली ना होने देने के लिए धर्म आराधना त्याग तपस्या से जो पुण्य कमा कर आए हैं उसे बनाए रखना होगा। उक्त विचार स्थानक भवन में आचार्य श्री रामेश की आज्ञानुर्वतनी  प पू श्री वनीता  श्री जी मा सा ने जिनवाणी के माध्यम से धर्म प्रभावना देते हुए धर्मालुओं को बताया कि 24 वे तीर्थंकरों में से वर्तमान में 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ प्रभु की स्तुति ज्यादा होती है पार्श्वनाथ प्रभु के मंदिर ज्यादा है देखा जाए तो वर्तमान में शासन भगवान महावीर स्वामी का चल रहा है वैसे तो सभी तीर्थंकरों का अतिशय बराबर है लेकिन पारसनाथ प्रभु की स्तुति स्मरण व बोलबाला ज्यादा होने का कारण आदेय नाम कर्म का उदय रहा होगा आपने सहनशीलता के कारण उक्त कर्म का उपादान किया हमने भी मानव जीवन कई  योनियो में भटकने के बाद बड़े ही पुर्णोदय  से मनुष्य जन्म प्राप्त कर उच्च गोत्र कुल में जन्म लिया हम इसे यूं ही व्यर्थ ना जाने दे जीवन में हमेशा सहनशीलता रखें सभी से आपसी प्रेम भाव रखें व जीवन को समभाव भय बनाएं आत्म कल्याण होगा। उक्त अवसर पर श्री निष्ठा श्री जी मा सा ने भी प्रेरणादायक उद्बोधन श्रावक श्राविकाओं को दियू आप श्री के सानिध्य में नित्य धर्म आराधना होती रही ।

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