कुकडेश्वर- भगवान महावीर की देशना यह संदेश दे रही है और जिनवाणी हमें प्रमाद को छोड़कर अप्रमत्व बनने का संदेश दें रहीं है प्रमाद के कारण अमूल्य मानव जीवन व्यर्थ चला जाता है और जो मानव अप्रमत्व बनता है उसका मनुष्य जन्म सफल हो जाता है, जीवन में चार गति में मनुष्य भव ही ऐसा है जिसमें आत्म कल्याण के लिए सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र, सम्यक दर्शन, सम्यक तप ये चारों सुरक्षित रह गयें तो आत्मा निर्मल बन सकती हैं। उक्त बात आचार्य श्री रामेश की आज्ञानुवर्तनी प. पू. श्री वनिता श्री जी मा. सा. जैन स्थानक भवन में धर्म प्रभावना देते हुए बताया कि जिंदगी का कोई भरोसा नहीं आप इस दुनिया बस रहे हैं दुनिया एक धर्मशाला है और दो दिन की जिंदगी है धर्म की शरण ही सत्य शरण है आपने फरमाया कि हम जैन हैं तो जैनत्व के पांच नियम को हमें हमेशा स्मरण करना ही जेनियों का मूल कर्तव्य है नवकार मंत्र का स्मरण,रात्रि भोज नहीं करना, जमीकंद नहीं खाना,पानी छानकर पीना व सात कुव्यवसनों से दूर रहना सभी जीवों पर दया करना आपने फरमाया कि मानव कई जन्म योनि में भटकने के बाद प्राप्त होती है इसे व्यर्थ ना गंवाये धर्म पर सच्ची श्रद्धा जिनवाणी में श्रद्धा रखें तो देव दानव भी आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। उक्त अवसर पर प पू श्री निष्ठा श्री जी मा सा ने फ़रमाया कि मानव को विचार करना चाहिए की में कोन हूं स्वयं को चिंतन मनन कर सोचना की कीतनी ही योनि में भटकने के बाद मानव जीवन मिला और इस परिभ्रमण के बाद मनुष्य भव उत्तम कुल और जिनवाणी क्षवण मिलीं इसको स्व स्मृति पटल पर लाकर गहराई में उतना पडेगा ओर स्वयं को पहचान लिया तो जिवन सफल हो सकता साथ ही आवागमन की परिभ्रमणा मिट सकती है।इस जिवन में सुख पाने के लिए स्वयं को देखे पर को देखोगे तो दुःख ही दुःख होगा जिसने स्वयं को पहचान लिया उसकी आत्मा परमात्मा बन सकती हैं।