कुकडेश्वर- जिनवाणी में चार अंगो को दुर्लभ बताया गया है। जिसमें मनुष्य भव प्राप्त करना और मनुष्य भव में भी मनुष्यता मानवता इंसानियत बहुत दुर्लभ है और धर्म श्रवण करना भी दुर्लभ है जिसने श्रवण कर आचरण में लिया उसकी मोक्ष यात्रा प्रारंभ हो सकती है।आत्मा को जिसने जान लिया उसका कल्याण संभव है, और उसके ये चार दुर्लभ अंग सफल हो जातें हैं।उक्त विचार हुकमेश संघ पटधर आचार्य भगवंत 1008 श्री रामलाल जी मा सा की आज्ञानुवतर्नी परम पूज्या श्री वनिता श्री जी मा सा ने कुकडेश्वर स्थानक भवन में धर्म सभा में फ़रमाते हुए बताया कि आत्मा का स्वरूप क्या है जिसने स्वयं को पहचान लिया उसे आत्मा का सही स्वरूप समझ में आ जायेगा आज हम अपने लिये ही सभी काम करते हैं परहित के काम भी करले दुसरो में बुराई देखने से पहले स्वयं को देखे आपने बताया कि आध्यात्म वाली आत्मा स्वयं को देखती है सुर्य भी अस्त होते हुए हमें संदेश देता है अब समय थोडा है अंधेरा होने वाला है इसी प्रकार हमारी मोज मस्ती का समय थोडा बचा है अब स्वयं को चेतन करलें और धर्म आराधना से लग त्याग तपस्या व नियम से इस अंत आत्मा को जगा ले कल्याण सम्भव है। इससे पूर्व प पू श्री निरमंग्धा श्री जी मा सा ने फ़रमाया कि जिस तरह हम घर का कचरा साफ़ करने के लिए सर्तक रहते हैं अगर ऐसी सर्तकता हमारे मलीन भाव रुपी,काम,कोध,लोभ,छल कपल रुपी कचरे को इस आत्मा से साफ कर दया धर्म त्याग तपस्या से भरने का प्रयास करेंगे तो कल्याण होगा क्योंकि जिनवाणी तो हम सुनते लेकिन उतारते नहीं है ये तो गंगा के समान है बहती ही रहेगी इसके ठहराव हेतु हमें आचरण में लाना होगी।