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भाव ही भविष्य का निर्माण करता हैं--प. पू. श्री वनिता श्री जी मा. सा.

कुकडेश्वर- चरम तीर्थेस महावीर अपनी वाणी के माध्यम से सुख प्राप्ति का मार्ग बताया, क्योंकि आज सुख की चाहत सभी की होती हैं सुख के लिए क्या करना चाहिए जिससे सुख प्राप्त हो क्योंकि सुख, शांति, दुख, अशांति अपने स्वयं से निर्मित होती है अनन्त जन्मों की पुण्य वाणी से हमें मनुष्य भव मिलता है और हम पुण्य उदर से सभी सुखों को भोंगते हैं, लेकिन इस मानव जीवन में रहते हमने अपनी अंतरात्मा को नहीं टटोला तो यह जीवन निरर्थक है। भाव ही भव (भविष्य)का निर्माण करता है। उक्त विचार हुकमेश संघ के नवम नक्षत्र आचार्य भगवान 1008 श्री रामलाल जी महाराज साहब की अज्ञानुवर्तिया महासती परम पूज्या श्री वनिता श्री जी मा सा ने कुकडेश्वर स्थानक भवन में प्रवचनों के दौरान धर्म प्रभावना देते हुए बताया कि पुण्य दो प्रकार के होते हैं पूण्यानुबंदी पुण्य और पापानुबंदी पुण्य बताया कि पुण्य से सुख समृद्धि सभी मिलती हैं लेकिन पापानुबंदी पूण्य से  सुख वैभव मिलता  इस लिए पुण्यानुंबदी पुण्य को श्रेष्ठ कहा गया है धर्म करने से राह आसान होती है वही पापानुबंदी पुण्य से सुख समृद्धि प्राप्त होती है लेकिन धर्म आराधना से विमुख रहते हैं आपने बताया कि इस मानव भव को सजाने संवारने के साथ ही हमें आत्मा को भी जगाना है धर्म आराधना त्याग तपस्या से अंतर आत्मा को जगाना है प्रभु से प्रित करना सर्वश्रेष्ठ है आपने दृष्टान देते हुए कहा कि वाल्मीकि ने रामायण  लिखी जो एक डाकू होने के बाद संतवाणी के प्रभाव से अंतर आत्मा को जगा कर इतने महान संत बने राम जन्म के पहले ही रामायण की रचना कर दी और इस ग्रंथ को लेने देवता,दावन,मानव आए लेकिन भगवान शंकर के हस्तक्षेप करने के बाद उसका तीन भागों में विभाजन हुआ जिसमें से दो अक्षर बचे और अक्षरों में राम लिखा था जिस रामायण में राम नहीं वह रामायण किस काम की इसीलिए जिसके जीवन में धर्म नहीं वह जीवन किस काम का हमें चिंतन मनन करना है और इस मानव जीवन का कल्याण करना इससे पूर्व प पू श्री निष्ठा श्री जी मा सा ने एक गीत की पंक्तियां से बताएं प्रभु की भक्ति प्रीति से ही भगवान को जहां याद करें वहां उपस्थित हो जाते हैं आपने बताया जहां प्रीति है जहां चाहत है जहां  प्रेम है भगवान भी आते हैं इसीलिए सच्ची श्रद्धा और भक्ति से भगवान का स्मरण किया जाए भगवान स्वयं ही हृदय में विराजमान है आपने बताया कि जीवन में कई मोड़ हैं जिनमें सबसे मुख्य मोड़ दो राइट और लेफ्ट हमें राइट और लेफ्ट को समझना है जिसने राईट व लेफ्ट को समझ लिया मानो उसके जीवन का कल्याण हो गया सांसारिक जीवन में रहते हुए सभी सुखों को भोंगते हुए  हम अपनी आत्मा कल्याण कर सकते हैं जिसके लिए धर्म त्याग तपस्या की आवश्यकता होती हैं और जिसने अपने जीवन में राइट त्याग तपस्या धर्म को धारण कर लिया भगवान से सच्चे हृदय से प्रीति कर ली धर्म से आत्म कल्याण संभव है वही आसक्ति में डूबे रहे तो आत्म कल्याण की लाइन से लेफ्ट हो जाएंगे जीवन में सच्ची और शुद्ध सामायिक करली तो कल्याण होगा, भगवान महावीर बताते हैं सच्चे मन से शुद्ध नवकार आराधना करलें तो मानव जीवन सफल हो जायेगा।

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