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विवेक हीन व्यक्ति पशुतुल्य होता है-- प. पू. श्री विनम मुनि जी मा. सा.

कुकडेश्वर/ब्यावर- आदर्श श्रावक बनने के लिए विशेषज्ञता का होना जरुरी हैं पर विशेष प्रवचन देते हुए आचार्य भगवंत 1008श्री रामलाल जी मा सा के शिष्य प पू श्री विनय मुनि जी मा सा ने ब्यावर श्रीसंघ को धर्म सभा में फ़रमाते हुए बताया कि श्रावक के 21 गुणो मे  20 वां गुण विशेषज्ञता का है जो हमारा सुरक्षा कवच मजबूत करता है।श्रावक मे सभी प्रकार की विशेषज्ञता होनी चाहिए जैसे सत्य असत्य का बोध हो,निति अनिति का हित अहित का विवेक रखना। विवेकहीन जीवन जीने वाला जिव पशु तुल्य के समान होता है,पशु अपनी पीड़ा को जान लेता पर दूसरो की पीड़ा को नही जान सकता,इसी तरह अज्ञानी मनुष्य दूसरे के दुख को नही समझ सकता,लेकिन विशेषज्ञ अपने समान दूसरे की पीडा समझ लेता है। जैन दर्शन में ही कर्म सिद्धांत का बहुत बडा स्थान है इसमे जितनी विवेचना हुई जो किसी जगह देखने को नही मिलती।हम जब तक कर्म सिद्धांत को नही समझेंगे तब तक भय मे ही जीयेगे।सबसे पहले कर्मो से डरना है।चार गति चोरासी लाख गति मे जीव भमण के बाद मानव जीवन मिला इसका मूल्यांकन करके पाप कर्मो से बचे रहना है, और श्रावक के 21 गुणो को ग्रहण करना है नही तो वापस उसी गति मे घूमने चले जायेंगे। इस अवसर पर श्री मधुर मुनि जी मा सा ने भजन से कहा "मेरे मालिक की दुकान मे सब लोगो का खाता चलता है"कोई व्यक्ति अपने बल,अहंकार मे पुण्यवाणी प्रबल होने के कारण राज कर बैठते है पर एक ना एक दिन उसका फल भुगतना पडता है किसी की हाय न लेना व अमानत मे खयामत करना नही तो सारा राज पाट खत्म हो जायेगा।क्योकि भाग्य बदलते देर न लगती उक्त जानकारी नोरतमल बाबेल साधुमार्गी जैन संघ,ब्यावर ने दी।

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