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नागर बेल पान की खेती करने वाले मां दुर्गा के उपासक माने जाते हैं

कुकड़ेश्वर-  नगर का पान उत्पादक तमोली समाज दशहरे से लगाकर शरद पूर्णिमा तक उत्सव मनाते है| जिसे नारोडा़ बावजी की पूनम भी कहा जाता है प्रत्येक परिवार में इस समय खुशियों का वातावरण रहता है महिला पुरुष बच्चे सभी नए वस्त्र परिधान पहनते हैं तथा घर-घर में मिठाइयां बनती है यह समाज मुख्यतः पान की खेती करता है इस समय यह फसल पूरी बहार पर होती है नागर बेल पान की खेती करने वाले मां दुर्गा के उपासक माने जाते हैं मान्यता है कि उपासना से पनवाड़ी की सुरक्षा होती है  केशुबावजी जी पनवाड़ी की सुरक्षा में सहायता करते हैं केशु बावजी की छतरी मार तुलसी मारवा से व बांस रस्सियों की सहायता से दशहरे पर रावण दहन के बाद सूर्यवंशी कुमरावत तंबोली समाज द्वारा बनाई जाती है इसी के साथ शरद उत्सव का शुभारंभ हो जाता है दशहरे के पश्चात मार तुलसी व मरवे के पौधे से बनाई जाने वाली छतरी शरद उत्सव के पांचों दिन शाम 7 बजे मंदिर से सवारी व ज्योत के साथ हर घर ले जायी जाती है| सवारी ढोल-ढमाकों के साथ निकलती है आश्विन सुधि चौदस को विशेष पूजा आरती होती है तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं शरद पूर्णिमा को माताजी के स्थान पर ही सभी का भोजन बनता है केशु बावजी की सवारी देर रात तक घूमती है प्रसादी का वितरण होता है तथा रात्रि में विसर्जन होता है शरदोत्सव का त्योहार मनाने के लिए दूर-दूर से मेहमान बुलाए जाते हैं बैंड बाजे विद्युत चकाचौंध आतिशबाजी के साथ इसे एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है पान उत्पादक तंबोली समाज द्वारा पान की खेती की जाती है काफी लागत के पश्चात देसी पान तैयार होता है यह विश्व विख्यात है तथा देश की विभिन्न मंडियों में यहां का देसी पान जाता है लागत ज्यादा मुनाफा कम होने से इनकी मेहनत का पैसा भी इनको नहीं मिल पाता है शासन द्वारा इस संबंध में ध्यान देकर पान की खेती को लाभ का धंधा बनाया जाना चाहिए|

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