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खबर-आज भी जो बड़ा दान करता है वह 'बलिदान' कहलाता है-आचार्य डॉ.देवेन्द्र शास्त्री

मनासा। जीव को जब तक खुद की ताकत का भरोसा होता है तब तक वह सोचता है वह हर मुसीबत को पार कर लेगा तब तक ईश्वर उसका सहारा नहीं बनने और जब वह सब ओर से स्वयं को असहाय अनुभव कर भगवान को पुकारता है भगवान दौड़े चले आते है  गजेंद्र को जब जल में रहने वाले ग्राह ने पकड़ लिया और पानी में खीचने लगा तब सबसे पहले गज के अपने बल का अहं टूटा। यह संसार सरोवर के समान हे जिसमें जीव  प्रवेश करता है और अपने कर्तव्यों का बोझ लादे लादे फिरता है और ग्राह ओर कोई नहीं वह काल का रूप है और काल  सबसे पहले चरण अर्थात  घुटने पकड़ता है। गज और ग्राह में चार पहर संघर्ष चलता रहा ये चार पहर और कुछ नही बचपन युवा प्रौढ़ता और वृद्धावस्था है। पहले ग्राह का अपने बल का अहं टूटा फिर एक-एक कर उसके परिवार जन उसे उसी अवस्था में छोड़ चले गए। उसी तरह जैसे इंसान अंतिम सांस गिनता आईसीयू में अकेला होता है सारे निकटस्थ नाते रिश्ते बाहर खड़े रहते है। परिवार बल का अंह टूटने पर गजेंद्र ने प्रभु को पुकारा। कमल पुष्प तोड़ा और अर्पित किया पुष्प अर्थात सुमन शुध्द मन निष्कपट मन निसंग मन। प्रभु दोडे आए और अपने चक्र से ग्राह का सिर विच्छेद कर दिया। भगवान तभी आते हैं जब कोई शुध्द भाव से पूर्ण समर्पित होता है।

उक्त आशय के सद विचार मंदिरों की नगरी में  द्वारकापुरी धर्मशाला में बसेर परिवार द्वारा आयोजित भागवत कथा के गज-ग्राह प्रसंग को व्याख्यावित करते हुए परम् पूज्य आचार्य डॉ.देवेन्द्र  शास्त्री ने व्यक्त किए।आपने चौथे दिवस की कथा के अगले प्रसंग राजा बलि एवं वामन अवतार कथा को व्याख्यायित करते हुए कहा राजा बलि ने प्रभु को अपना सर्वस्व दान कर दिया। आज भी जो बड़ा दान करता है वह 'बलिदान' कहलाता है। जो ईश्वर को सब साथ देगा उसे ही ईश्वर सहा देते हैं। ईश्वर ने न केवळ उसे भूतल लोक दिया स्वयं उसके द्वारपाल बन गए। साक्षात लक्ष्मी जी राजा बलि के द्वार पहुंची बलि को अपना भाई बना द्वारपा कोल बने प्रभु को बलि से माँगा। देने वाले दानी के लिए प्रभु द्वारपाल बन जाते है और लक्ष्मी जी को स्वयं माँगने के लिए विवश होना पड़‌ता है। कथा में  नंदोत्सव कथा का सजीव चित्रण किया गया जिसमें वासुदेव जी के रूप को जीवंत करते हुवे दीपक बसेर जब बाल कृष्ण को नंदबाबा बने प्रहलाद बसेर (पिता) यशोदा बनी  कमला देवी बसेर(माता) को सौंपते हे तो पूरा माहौल रोमांचकारी होकर श्री कृष्ण भक्ति में  रम कर  नाचने लगता हे झूमने लगता  हे। आज पांचवे दिन 26 दिसंबर को  श्री कृष्ण की बाल लीला, गोवर्धन लीला कथा का श्रवण कराया जाएगा।

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