कुकडेश्वर। अंतगढ़ सुत्र बता रहा है कि अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए जिस प्रकार बाहरी पुतगल और मोह व द्वेष से वसीभुत होकर अर्जुन माली ने कितने निर्मलो की हत्या की लेकिन जब सत पुरुष के सानिध्य में आकर प्रभु देशना श्रवण कर दीक्षा लेकर समता भाव धारण कर अपनी काया का उध्दार किया इसी प्रकार हम भी इस संसार रुपी पुतगल यक्षों के समान पाप कर रहे ये पर्व हमें समता भाव में रहना सिखा रहे हैं समता में रह कर जिवन को निर्मल बना सकते हैं। उक्त बात अखिल भारत वर्षीय साधुमार्गी जैन संघ के समता प्रचार संघ से आये स्वाध्याय बंधु श्री महावीर जी धोखा ने स्थानक भवन कुकडेश्वर में व्यक्त करते हुए कहा कि आज हमारी जुबा पर तो मिठास है लेकिन अंदर कड़वाहट भरी हुई है। अंतगढ़ सुत्र को अंतर करण करना है और अंदर की कड़वाहट मिटा कर मिठास लाना है आपने कहा कि शास्त्रों में बताया कि ब्रह्मचर्य पालन से कठिन से कठिन परिस्थितियों से मुकाबला कर सुख पाया जा सकता है जिस प्रकार अमावस्या और पूर्णिमा को समुद्र में ज्वार-भाटा आता है इसी प्रकार हमारे शरीर में भी ज्वार भाट वात पित्त जैसे जल तत्व, अग्नि तत्व, वायु है इन्हें समभाव रखने के लिए ज्यादा नहीं तो माह में दस रोज इन तिथियों को तो हम ब्रह्मचर्य पालन कर सकते हैं कृष्ण पक्ष में अमावस्या,बीच,पांचम,आठम ,चोदस यही क्रम शुक्ल पक्ष पुर्णिमा, बीज, पांचम, आठम, चोदस को कर लेने से ही पुण्य अर्जित कर सकते हैं। मानव जन्म में ही मोक्ष की चाबी है इसे व्यर्थ ना गंवायें। आपने अति मुक्त कुमार आदि का वर्णन सुनाया उक्त अवसर पर श्री संदीप जी बांठिया ने कहा कि गुरु भगवंतों ने छोटे छोटे नियम में रह कर भी आत्मा का कल्याण बताया है हम जैन है हमारे कर्म सदाचारी हों हम जिवन भर क्रिया तो कर रहे हैं लेकिन बाहरी क्रिया संसार बड़ाने, मोह माया से रत हो कर हम हमारे मुल स्वरूप को भुल रहे बाहरी क्रिया की बजाय अंतःकरण की क्रिया करें आठ दिवसीय पर्वाधिराज पर्युषण पर्व हमें यही तो बात रहें हैं कि पर के लिए बहुत किया स्व के लिए भी तो कुछ कर स्व याने आत्मा को शांति समाधि मिले इस के लिए इच्छाओं का निरोध करें इच्छाओं का निरोध करना ही तप है।