कुकडेश्वर। पर्वाधिराज पर्युषण पर्व लोकोत्तर पर्व है आज तक हम लोकिक पर्व तो बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं लेकिन आत्म शुद्धि के आठ दिवसीय पर्व पर्युषण को हम अपने अंत करण की शुद्धि के लिए क्यों नहीं हर्षोल्लास से मनाते हैं।जब की ये लोकोत्तर पर्व हमारे भवभंवात को सुधारने के लिए आते हैं। जिनेश्वर भगवान के चरित्र से भरें शास्त्र को हम आठ दिन भी समय पर पहुंच कर श्रवण नहीं कर सकते तो हमारा जैन होना बेकार है। उक्त बात अखिल भारत वर्षीय साधुमार्गी जैन संघ के समता प्रचार संघ से आये स्वाध्याय बंधु श्री महावीर जी धोखा ने व्यक्त करें इस अवसर पर अंतगढ़ सुत्र वाचन श्री संदीप जी बांठिया ने किया व हिन्दी रुपान्तर करते हुए श्री धोखा ने कहा कि द्वारिका वर्णन में आता है कि श्री कृष्ण कितने उदारता और सहिष्णुता वादी थे जिन्होंने अपनी प्रजा को तारने के लिए जिस प्रकार उदारता दिखाई आपने सामंजस्य स्थापित करते हुए जन जन का कल्याण किया लेकिन हम अंतगढ़ सुत्र वाचन कर रहे जिसमें पग पग पर जिवन जिने की कला सिखाई जाती है और आज हम क्या कर रहे हैं परिवार समाज के काम नहीं आ रहे हम जैन है भगवान महावीर के अनुयायी हैं जो राग द्वेष रहित थें लेकिन हमारे रोम रोम में राग भरा पड़ा है राग और द्वेष रख कर कर्म बड़ा रहे आपने कहा कि शास्त्रों में बताया है कि मन में गांठें नहीं बांधे ये पर्युषण पर्व जगाने आयें कि मन की गांठें खोले आज हम अंत करण में अंतगढ़ सुत्र को उतारें राग से हटे आसक्ति छोड़ कर पर्युषण पर्व पर सच्चे हृदय से समता धारण कर शांति समाधि का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। उक्त अवसर पर भगवान नेमीनाथ कृष्ण पटरानी पद्मावती का उदाहर लेकर बताया कि बेटी बहुं सास मां सामंजस्य स्थापित कर के घर को स्वर्ग बना सकते हैं। हमारा देश स्त्री प्रधान हैं क्योंकि इस भारत भुमि को हम धरती मां कहते हैं नारी स्त्री का सम्मान हो। उक्त अवसर पर आपने अर्जुन माली,सुर्दशन श्रावक, महावीर आदि के दृष्टान पर विशेष प्रकाश डाला