कुकडेश्वर। आज का मानव इस कदर कर्मों के बोझ तले दबा हैं क्योंकि उसे उत्पत्ति से मरण तक का बोध नहीं है,जिवन कैसे जिया जाए इसको जानना है अंतकरण सुत्र हम सुन रहे इसमें जीवन जिने की कला भरी पड़ी है। हाड़ मांस का बना है शरीर और सिर्फ इसे सजाने में लगे हैं। उक्त बात आचार्य श्री रामेश के शिष्य अ भा सा मार्गी जैन संघ के समता प्रचार संघ से आये स्वाध्याय बंधु श्री महावीर जी धोखा ने पर्वाधिराज पर्युषण पर्व के तीसरे दिवस श्री वर्धमान स्थानक भवन में व्यक्त करते हुए कहा कि अंतगढ़ सुत्र परिवार में किस तरह रहना किस तरह व्यवहार कर जिवन का उत्थान करना बताता है सुने और आत्म सात करे कृष्ण वासु देव जानकी का वर्णन हमें एक दुसरे का सम्मान प्रेम का बोध करता है गजसुकुमाल राजा सुख, पत्नी सुख, परिवार सुख को मात्र भगवान अरिष्ट नेमी की मात्र एक देशना को सुन आत्मा कल्याण के मार्ग पर चल सिध्द बुध्द हुए। लेकिन हमने अभी तक कितनी देशना, धर्म आराधना, शास्त्र पढन,वाचन कर लिया लेकिन जीवन जीने की कला नहीं आयी। आज हम बच्चों को क्या संस्कार दे रहे जब हम ही संस्कारी नहीं रह रहे हम सनातनी है हम हिन्दू हम जैन है लेकिन हमारी सभ्यता क्या हो रही संता बंता बना रहे लेकिन हमारी ड्रेस कोड हम भुलते जा रहें माता पिता व बड़ों को झुकना भुल गए सम्मान भुलते जा रहें हमने संस्कार नहीं दिये बच्चों को हमने संस्कार नहीं दिये बेटी,बेटे को तो क्या होगा वहीं हमें कांटे चुभायेगे रुलायेंगे आठ रोज हम अंतरगड़ शास्त्र को सुन कर चिंतन मनन के साथ अंत करण में उतारें। रामायण महाभारत का सुत्र क्या है रामायण में तेरा तेरा है यानी पहले दुसरो का सम्मान भाई के प्रति भाई से प्रेम माता पिता की आज्ञा का पालन और पतिव्रता का संदेश जिवन का मुल मंत्र हैं रामायण वहीं महाभारत मेरा मेरा कर भाई भाई से वेर पिता का पुत्र मोह शब्द बाण से महाभारत इन वेद शास्त्र में परिवार और संस्कार के साथ संसार में रहने की सिख भरी पड़ी है। आपने जिवन के कड़वे अनुभव पर मार्मिक उदाहरण देते हुए बताया कि घर सुधरेगा तो जिवन सुधर जायेगा और एक दुसरे के प्रति हमारा जैसा सप्लाई होगा वैसा ही हमें रिप्लाई मिलेगा। आपने कहा कि अस्थीया बहने से पहले आस्था नहीं जगाई तो जिवन बैकार हो जायेगा।जैन धर्म मिला है जिनवाणी मिली आत्म कल्याण करने का अवसर मत गंवाओ।