कुकडेश्वर। समय महत्वपूर्ण होता हैं समय के साथ जो चलता है समय उसे उन्नति के शिखर पर पहुंचा देता हैं। यह देह अवगुणों की खान है अवगुण छोड़ते ही सफलता के द्वार खुल जाते हैं। ऋषि मुनि योगियों ने बहुत समझाया लेकिन इस चंचल मन ने एक नहीं सुनी आज हम मर्यादा भुल गये और व्यसन में लग गये यहा तक कि हम भागवत कथा हो या देव दर्शन माता पिता बड़ों तक का सम्मान भुल कर व्यवसन कर रहे हैं। उक्त बात सूर्यवंशी कुमरावत तमोली के तत्वावधान में चल रही भागवत कथा के दौरान तमोली धर्मशाला में व्यास गादी से पंडित दिलीप जी त्रिवेदी नेगरुन ने सुदामा चरित्र और परीक्षित मोक्ष आदि प्रसंगों का सुंदर वर्णन किया। सुदामा एवं भगवान कृष्ण मित्र थे। जबकि सुदामा द्ररिद्र होते हुए भी कृष्ण से कुछ नहीं मांगा और उनकी भक्ति में हमेशा लगे रहे कथा बताती है कि समर्पित भाव व अटुट श्रद्धा प्रेम सुदामा की थी जिन्हें समय आने पर भगवान सब कुछ दिया कथा के दौरान पं त्रिवेदी ने कहा कि ब्राह्मण होकर भिक्षा मांगकर अपने परिवार का पालन पोषण करते गरीबी के बावजूद भी हमेशा भगवान के ध्यान में मग्न रहते। पत्नी सुशीला सुदामा जी से बार बार आग्रह करती कि आपके मित्र तो द्वारकाधीश हैं उनसे जाकर मिलो शायद वह हमारी मदद कर दें। सुदामा पत्नी के कहने पर सुदामा सतु लेकर द्वारका पहुंचते हैं और जब द्वारपाल भगवान कृष्ण को बताते हैं कि सुदामा नाम का ब्राम्हण आया है। कृष्ण यह सुनकर नंगे पैर दौङकर आते हैं और अपने मित्र को गले से लगा लेते। उनकी दीन दशा देखकर कृष्ण के आंखों से अश्रुओं की धारा प्रवाहित होने लगती है। कृष्ण सखा को सिंहासर पर बैठाकर कृष्ण जी सुदामा के चरण धोते हैं। सभी पटरानियां सुदामा जी से आशीर्वाद लेती हैं। सुदामा जी विदा लेकर अपने स्थान लौटते तो भगवान कृष्ण की कृपा से अपने यहां महल बना पाते हैं लेकिन सुदामा जी कृष्ण से कहते इस खुशहाली में आपको खोना नहीं चाहता और आपकी भक्ति हमेशा चाहता हूं।महल सुख छोड़ कुटिया में रहकर भगवान का सुमिरन करते हैं। अगले प्रसंग में भगवान कृष्ण गोकुल पंहुचते है जहा पर माता देवकी, यशोदा, वासुदेव,नंदबाबा से मिलते माता देवकी त्रिलोक नाथ से कहती हैं मेने छः बेटो को खोया में उन्हें मां का सुख नहीं दे पायी और छः बेटो को वापस पाती है वहीं शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को सात दिन तक श्रीमद्भागवत कथा सुनाई जिससे उनके मन से मृत्यु का भय निकल गया। तक्षक नाग आता है और राजा परीक्षित को डस लेता है। राजा परीक्षित कथा श्रवण करने के कारण भगवान के परमधाम को पहुंचते है। इसी के साथ भागवत भी अपना अवतार पुरा कर मोक्ष हो कर भागवत में विराजित हैं कई मार्मिक उदाहरण के साथ भजनों के माध्यम से सात दिवसीय कथा का रसास्वादन धर्म सभा में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर सुनाया व कथा को विराम दिया।