कुकडेश्वर। सेवा के बिना मानव का उध्दार नहीं होता हैं बिना विवेक के आत्मा जागृत नहीं हो सकती और विवेक सत्संग के बिना नहीं आता जिवन के किस मोड़ पर प्रभु की कृपा हो जायें पता नहीं इस लिए संत्सग प्रभु भक्ति और सेवा से जुड़े रहे। उक्त बात श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन श्री कृष्ण-रुक्मिणी विवाह का मार्मिक प्रसंग देते हुए। सूर्य वंशी कुमरावत तमोली समाज के तत्वावधान में चल रही भागवत कथा के दौरान तमोली धर्मशाला में व्यास गादी से पंडित दिलीप जी त्रिवेदी नेगरुन ने पंच अध्याय का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि महारास में पांच अध्याय हैं। उनमें गाये जाने वाले पंच गीत, भागवत के पंच प्राण हैं, जो भी ठाकुरजी के इन पांच गीतों को भाव से गाता है। वह भव पार हो जाता है क्योंकि पांच तत्वों का शरीर है और पंच तत्वों के भाव स्मरण करते रहना चाहिए।वृंदावन की भक्ति सहज प्राप्त हो जाती हैं। आपने कथा में मथुरा प्रस्थान, कंस वध, महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या ग्रहण करना,उद्धव-गोपी संवाद, द्वारका की स्थापना, रुक्मणी विवाह के प्रसंग का संगीतमय भावपूर्ण वर्णन किया। आस्था और विश्वास के साथ भगवत प्राप्ति आवश्यक हैं। भगवत प्राप्ति के लिए निश्चय और परिश्रम भी जरूरी हैं। भगवान श्रीकृष्ण रुक्मणी के विवाह की झांकी ने सभी को आनंदित किया। कथा के दौरान भक्तिमय संगीत ने श्रोताओं को आनंद से परिपूर्ण किया। आपने कहा कि जो भक्त प्रेमी कृष्ण रुक्मणी के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं उनकी वैवाहिक समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है। भागवत कथा के महत्व को बताते हुए कहा कि जो भक्त प्रेमी कृष्ण-रुक्मणी के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं उनकी वैवाहिक समस्या खत्म हो जाती हैं। आपने कहा कि मन को नियंत्रित करने के लिए ध्यान की आवश्यकता होती हैं। आपने बताया कि हजारों कोस दुर भी रहों तो सच्चे भाव से कि गयी गुरु सेवा भक्ति की कृपा प्राप्त होती हैं। जहां प्रेम और करुणा भाव हो तो सच्चिदानंद स्वंम रक्षा करते हैं।जीव परमात्मा का अंश हैं। भागवत कथा के दौरान कृष्ण रुक्मणी विवाह प्रसंग मार्मिक उदाहरण के साथ बताया और सुंदर झांकी के साथ द्वारिका में कृष्ण रुक्मणी विवाह करवाया इस अवसर पर श्रौता खुशी से झूम उठे और सभी ने विवाह में हथलेवा किया।