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खबर-जिसके जीवन में आधार होगा वो इस संसार रह कर सुखी जीवन जियेगा --पं दिलीप जी त्रिवेदी

कुकडेश्वर। मानव के जीवन में आधार होना अति आवश्यक है जिसके जीवन में आधार होगा वह इस संसार में रहकर सुखी जीवन जी सकेगा आधार धर्म का हो माता-पिता गुरु का हो या धर्म,सत्संग का हो अगर हमारा आधार स्तंभ मजबुत होगा तो जीवन की हर मुश्किल है आसानी से पार कर सुखी जीवन जी सकेंगे।उक्त बात सूर्यवंशी कुमरावत तंबोली समाज के तत्वाधान में चल रही साथ दिवसीय भागवत कथा के पांचवें रोज तमोली धर्मशाला में व्यास गादी से पंडित दिलीप जी त्रिवेदी नेगरुन ने धर्म सभा के बीच कहते हुए बताया कि आध्यात्मिक जीवन जीना चाहिए मन वचन काया से किसी भी जीव को दुख नहीं पहुंचाना एवं मानव जीवन मिला है तो इस मन को बस में करना है मन के ऊपर ज्ञान व धर्म रूपी अंकुश लगाने की आवश्यकता है। आत्मा और परमात्मा के बीच विकार रुपी आवरण को हटाना होगा भागवत कथा के दौरान पंडित त्रिवेदी ने बताया कि माता देवकी ने 12 वर्ष तक तपस्या की तब जाकर भगवान प्राप्त हुए गोकुल में भगवान का जन्म उत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है भगवान जन्म के बाद से ही अपनी लीला आरंभ करते हैं कृष्ण ने बाल लीला में पुतना वध कालिया नाग वध आदि के मार्मिक उदाहरण के साथ दृष्टांत देते हुए बताया कि भगवान ने अपनी लीलाओं के दौरान आमजन को संदेश दिया है कि माता-पिता का जन्म कर्म उतरना है एवं मैत्री भाव से सभी के साथ रहना माता देवकी वासुदेव एवं गोकुल में नंद बाबा यसोदा के साथ कृष्ण लीला कई उदाहरण दिए आपने बताया गृहस्थ जीवन में रहते हुए मन मुटाव होने पर बोलचाल बंद मत करना गांठ मत डालना उक्त संदेश भगवान कृष्ण ने बाल लीला में माखन चोर बन कर यशोदा माता कृष्ण को बांधते हैं तो भगवान स्वयं माता को गांठ नहीं लगने देते हैं। इसी प्रकार महिलाओं को सरोवर की पवित्रता हेतु नहाते वक्त निर्वस्त्र नहीं रहने का संदेश दिया वहीं कथा हमें समर्पण भाव के बारे में बताती है मानव को समर्पण भाव से रहना चाहिए जहां समर्पण है वहां सब कुछ प्राप्त हो जाता है भगवान गोचरण व ग्वालो, गोपीयों व गय्यो के साथ कई लीलाएं करतें हुए मानव जीवन को सफल बनाने हेतु भागवत गीता श्रवण के लाभ बताये। पंडित जी ने इस अवसर पर गोवर्धन पर्वत के बारे में बताएं कि गोकुलवासी कार्तिक माह में इंद्र की पूजा करते थे लेकिन हरियाली, प्रकृति, जल, वायु देने वाले गोवर्धन पर्वत की पूजा नहीं करते गोकुल वासियों के साथ कार्तिक माह का महत्व बताया कर छप्पन भोग के साथ गोवर्धन पूजा प्रारंभ कर स्वयं भगवान ने पुजा स्विकार की बीच बीच में भजनों की धुन पर श्रौताओं का मंत्र मुग्ध किया।

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