कुकडेश्वर। सनातन धर्म में अनेक देवी देवताओं की पूजा की जाती है भारतीय संस्कृति अनुरूप आस्था और श्रद्धा से हर धर्मावलंबी जन परंपरागत व लोकिक पर्व मनायें जातें हैं इसी कड़ी में दशा माता का भी एक पर्व हैं। दशा माता की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को किया जाता है। इसके पिछे मान्यता है कि दशा माता की पूजा करने से घर की दशा व दिशा सुधरती है और घर में सुखी,समृद्धि बनी रहती हैं। इस बार ये तिथि 4 अप्रैल गुरुवार को मनाया जायेगा। दशा माता को देवी पार्वती का ही रूप माना जाता है। ऐसा कहते हैं कि भी दशा माता की पूजा सच्चे मन से जो करता उसके घर की दशा यानी स्थिति सुधर जाती है और वह परेशानियों से भी बचा रहता है। इस दिन महिलाएं वृक्षों की त्रिवेणी (पीपल, बरगद और नीम) की पूजा करती।दशा माता व्रत की विधि, कथा इस विधि से करती दशा माता की पूजा हाथ में जल और चावल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प कर। पीपल वृक्ष को भगवान विष्णु का रूप मानकर पूजा करती व पीपल वृक्ष की प्रदक्षिणा करते हुए भगवान विष्णु के मंत्र बोलें। पीपल के नीचे शुद्ध घी का दीपक लगा कर अबीर, गुलाल, कुंकुम, चावल, फूल आदि पूजा चढ़ाती हैं।
पूजा करने के बाद पीपल के वृक्ष के नीचे बैठकर नल-दमयंती की कथा सुनती व घर के मुख्य दरवाजे के दोनों और हल्दी-कुमकुम के छापे लगा कर व्रत रखती हैं।इस प्रकार जो दशा माता की पूजा करता है, उसके घर में हमेशा सुखी समृद्धि बनी रहती है व परेशानियां दूर रहती हैं। इस दिन पूजा के बाद दशा माता की कथा भी सुनती हैं।