कुकडेश्वर- भगवान अजित नाथ जी के मार्ग को देखते हैं तो क्या नजर आता है उस मार्ग पर त्याग तपस्या के रत्न भरें पड़ें हैं। जो माणक,मोती, हीरे-जवाहरात जैसे भरें पड़ें हैं,जिसें लेने का सार्मथ होना चाहिए, हमने देखा,सुना हैं कि कोहिनुर हीरा भारत में था आज कहा चला गया इसी प्रकार भारत की प्रतिभाएं विदेश में जा रही हैं। हम सम्भाल नहीं पा रहें हैं। चिंतन का विषय है।जिन शासन को प्राप्त किया जिनेश्वर मार्ग पाया लेकिन हम कहां जा रहे हैं। अब नहीं चेते तो सब कोहिनूर हीरे की तरह हमसे दूर हो जायेंगे और मनुष्य भव पाने के बाद भी हमारी भटकन दुर नहीं होगी। उक्त विचार आगम ज्ञाता,व्यवसन मुक्ति प्रणेता, ऊत्कांती प्रदाता, ज्ञान ध्यान क्रीया के धारी प्रशान्त मना प्रातः स्मरणीय आचार्य भंगवत 1008 श्री रामलाल जी मसा ने पिपलीया मंण्डी श्री संघ पर महत्ती कृपा करते हुए प्रवचनों के दौरान धर्मसभा में हजारों जैन श्रावक श्राविका,अजैन श्रृंध्दालुओं के बीच अमृतमय देशना देते हुए फरमाया एक दृष्टांत में कहा कि एक द्ररिद्र याचक को मालुम पड़ा की एक राजा सभी को भिक्षा में मनचाहा दान देता है याचक याचक राजा के पास पहुंचा व भिक्षा मांगी राजा ने खुश होते हुए कहा कि चाहे जितना राजकोष में से हीरे जवाहरात जो चाहे वो 4:00 बजे तक ले जा सकते हो द्ररिद्र याचक खुश हुआ व सोचा अभी तो 4:00 बजे तक का समय है। घर गया अच्छा भोजन बनाकर खाया भोजन ज्यादा होने के बाद सोचा कुछ सुस्तालु इतने में 3:00 बजे अच्छा कपास का खाली बोरा लेकर राजकोष पहुंचा जहां पर उसने बोरे में लालच वंश भरता रहा भरता रहा इतने में 4:00 बज गए व द्वारपाल आए और कहा कि तुम्हारा समय पूरा हुआ निकलो यहां से इस प्रकार का जीवन हम जी रहे हैं। प्रभु महावीर का मार्ग मिला जिन शासन मिला और जिनवाणी मिली है लेकिन हम उस दरिद्र याचक की तरह प्रमाद में फंसे हुए हैं। लोग मोह माया में इस कदर फंसे हैं कि हमें समय का भी याद ना हो रहा है की इस मानव जीवन को पा कर आत्म कल्याण करना है लेकिन लालसा हमारे अंदर इस तरह भरी हुई है कि हम सभी चीज भूल गए आचार्य भगवान ने फरमाया भगवान महावीर ने 32 आगम दिए हैं बुद्धि हमारे पास है लेकिन हम उन आगमों का अध्ययन ना कर बुद्धि से कम ना लेकर व्यर्थ में समय गवा रहे हैं। लेकिन हमारे दुख दर्द को मिटाने के लिए जिनवाणी ही है जो हमारे पापों को धोदेने वाली है। लेकिन हमारी समझ सही नहीं है जहां तक समझ सही नहीं होगी वहां तक दुख हमारे अंदर रहने वाला है। हम पुरा समय 24 घंटे धन संग्रह में लगे रहते हैं और बुद्धि भी उसी में लगा रखी है भगवान फरमाते हैं कि उस बुद्धि को कुछ अपने लिए लगाओ आत्म कल्याण के लिए लगाओ 32 आगम जैसे रतन को ग्रहण का संयम मार्ग त्याग तपस्या को जीवन में उतार कर आत्म कल्याण करना चाहिए। शास्त्रों का बार-बार अध्ययन करना चाहिए जहां तक हम शास्त्र को मनोयोग पूर्ण नहीं पड़ेंगे जहां तक हमारी समझ व सोच नहीं पहुंचेगी। शास्त्र का बार-बार अलग-अलग दृष्टि से पढ़ने से अलग-अलग दिशाएं मिलती हैं जीवन जीने की शक्ति कला हमें मिलेगी लेकिन आज हम कहते हैं मेरा जीवन सुखी कैसे रह सकता है जीवन सुखी रखने का मूल मंत्र है आगम वाणी शास्त्र अध्यन का नियमित प्रयोग होना चाहिए, सामाजिक, स्वाध्याय, प्रतिक्रमण करने से हमारे जीवन में पड़े इन भोतिक आवरण को हटाने के लिए प्रतिक्रमण आवश्यक है आत्म हित के लिए सोचो कि मेरी आत्मा का हिट किसमे है वो दृष्टि रखो शरीर व धन का हित छोड़ो व दृष्टि आत्म उत्थान के लिए लगाओ सामायिक,पंचरंगी को अपना कर ईष्र्या, राग, द्वेष, क्रोध जो कि आत्म का पतन करती है। और सामाजिक पंचरंगी आत्मा उत्थान करती है। आपने फ़रमाया कि आजमा करके देखो कितना संतोष मिलता है कैसे प्यास बुझती हैं जिस प्रकार धन प्राप्ति ,प्रसन्नता, पद, प्रतिष्ठा के प्रयास करते हो उससे कहीं ज्यादा सुख आत्मा हित के लिए जिन शासन सेवा गुरु भगवंतो का समागम, सामायिक,प्रतिक्रमण से जो सुख मिलेगा आपने फरमाया पाप पुण्य की एक ही राशि है पाप पलायन की ओर ले जाता है और पुण्य आत्म कल्याण की ओर ले जाता है पाप का परिहार करने के लिए प्रतिक्रमण किया जाता है जो हमारी आत्मा के मेल को धोती हैं ऐसी प्रार्थना करो लेकिन हम 18 पापो की प्रवृत्ति नित्य करते हैं और उन 18 पापों से आत्मा को मैली कर रखीं जो दुख का बहुत बड़ा कारण है। पाप को छोड़ पुण्य को कामाना है हमने संसार में आकर कितने खुश हो गए हैं इसका चिंतन आवश्यक है और मोक्ष मार्ग चाहिए तो अपना चेहरा पहले दर्पण के सामने देखो मोक्ष की आशा सब रखते हैं लेकिन हम अपना चरित्र व दैनिक दिनचर्या नहीं देखते हैं आपने फरमाया आत्मा को संवारने के लिए त्याग तपस्या व जिनवाणी श्रवण आवश्यक है नहीं तो मनुष्य भव व जैन शासन को प्राप्त करके भी हम खाली हाथ ही रह जाएंगे। उक्त अवसर पर हर्षित मुनि जी मसा ने समता सर्व मंगल के बारे में विस्तार से बताया एवं आचार्य भगवान ने दिये आयाम उत्क्रांती महोत्तम आदि के बारे में विस्तृत बताया उक्त अवसर पर कई त्याग तपस्या के शिलव्रत के प्रत्याखान हुए आचार्य भगवान पिपलिया मंडी में नीमच चतुर्मास पूर्ण कर नित्य विहार कर गांव गांव शहर पधार रहे हैं जहां नित्य देश भर के गुरु भक्त दर्शनों को आ रहे हैं।पिपलिया मंडी में आचार्य श्री जी से क्षैत्र परसने एवं चातुर्मास की विनती को लेकर नोखा मंडी श्री संघ, जावरा श्री संघ,निंबाड़ा श्री संघ ,प्रतापगढ़ संघ,दलोदा श्री संघ,कुकड़ेश्वर श्री संघ से कई श्रावक श्राविकाएं पहुंचे व नीमच श्री संघ से संघ अध्यक्ष शौकीन जी मुणत भी उपस्थित थे,पिपलिया मंडी संघ अध्यक्ष श्री मनोहर लाल जी जैन ने संचालन किया संपूर्ण कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रीय अहिंसा प्रचारक महेश जी नाहटा ने किया कार्यक्रम में कुकडेश्वर संघ से साधुमार्गी संघ के मनोज खाबिया ,कुकड़ेश्वर अध्यक्ष सतीश खाबिया ,कोषाध्यक्ष कैलाश जोधावात, उपाध्यक्ष सागरमल फाफरिया, दिलीप जोधावत, विनोद जोधावत, राजेन्द्र जैन सर,अशोक जोधावत व महिला मंडल ने पिपलिया मंडी पहुंचकर आचार्य गुरु भगवान से कुकड़ेश्वर पधारने की भावभीनी विनती की उक्त जानकारी मनोज खाबिया ने प्रदान की।