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मानव जीवन मिला लेकिन धर्म के स्वरुप को नहीं समझा--प पू श्री मधुबाला श्री जी मा सा

कुकड़ेश्वर- सुबह का बचपन हंसते देखा फिर दोपहर जवानी है, सांझ बुढ़ापा ढलते देखा रात को खत्म कहानी है। उक्त कविता की यह पंक्तियां हमें इसारा कर रही है कि हे मानव अब तो चेत उक्त विचार आचार्य श्री रामेश की आज्ञानुवर्तनी प पू श्री मधुबाला श्री जी मा सा. जैन स्थानक भवन में उपस्थित श्रावक श्राविका से व्यक्त करते हुए कहा कि हमारा जीवन दिन प्रतिदिन बदल रहा है, बचपन में जो शक्ति हमारे पास थी वह आज नहीं है धीरे-धीरे परिवर्तन होता है दोपहर की धूप जैसे शाम की तेज नहीं होती है। जीवन का क्रम भी ऐसा ही चल रहा यह किराए का घर है इसे खाली करना पड़ेगा लेकिन हमें स्थाई घर बनाना चाहिए जहां सुख ही सुख हो दुख का नामोनिशान ना हो  मानव जीवन मिला लेकिन हमने धर्म के स्वरूप को नहीं समझा भगवान ने हमें सीधा सच्चा मार्ग बताया लेकिन हम किस मार्ग पर चल रहे हैं।जीवन में दया करुणा मैत्री के भाव होना चाहिए उत्कृष्ट भाव रखेंगे तो फल भी वैसा ही मिलेगा जीवन में समभाव होगा तो ही कर्म कटेंगे गये किये कर्म तो भोगना ही पड़ेग जीवन में जब तक कर्म क्षय  नहीं होंगे तब तक हमें जनम मरण करना पड़ेगा मनुष्य जन्म मिला है। कर्म ऐसे करते जाए की मोक्ष की मंजिल आसान हो जाए और बार-बार जन्म मरण नहीं करना पड़े।

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